Lohri festival:
हमारे भारत में त्योहारों की एक विशिष्ट और समृद्ध परंपरा है। लेकिन इसमें लोहड़ी“Lohri“ का एक महत्वपूर्ण स्थान है, लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्यौहार है। यह मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस त्यौहार में रात्रि के समय किसी खुले स्थान पर परिवार एवं आस-पड़ोस के लोग अगली जलाकर अग्नि देव, और सूर्य देव की पूजा करते हैं इसमें भगवान श्री कृष्ण की भी पूजा की जाती है यह काफी हर्षोल्लास का त्यौहार है और विशेष कर इसे पंजाब हरियाणा और राजस्थान में मनाया जाता है।
जैसा की Lohri उत्तर भारत का के प्रमुख त्योहारों में से एक है, और जो लोहड़ी शब्द है इसमें “ल” लकड़ी “होग” सूखे हुए उपले और “ड़ी” रेवाड़ी का प्रतिक है। यह त्यौहार आने वाली ऋतु का स्वागत का प्रतीक भी है. और इस त्यौहार पर किसान अपनी अच्छी पकी हुई फसल के लिए सूर्य देव , इंद्र देव को धन्यवाद देते और उनकी कृपा के लिए पूजा अर्चना करते है।
इस दौरान शाम को परिवार एवं आस-पड़ोस के सभी लोग इकट्ठे होकर अग्नि जलाकर भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं, एवं नाच और संगीत का कार्यक्रम होता है। बच्चों में रेवाड़ी और पैसे बांटे जाते हैं और इस त्यौहार के दौरान पुत्री को परिवार से वस्त्र फल एवं मिठाईयां भेजी जाती है इसको इस प्रकार यह है, भारत की एकता भारत की विविध रंगो वाले संस्कृति का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है लोहड़ी।
Lohri त्योहार के दिन संध्याकालीन जब सभी परिवार एवं आस-पड़ोस के लोग अग्नि के चारों तरफ बैठे होते हैं। तब कई प्रकार के नाच एवं गायन के रंगारंग कार्यक्रम होते हैं। और इन गानों में और इन कार्यक्रमों में लोहड़ी से जुड़ी हुई पुरानी कथाओं का गानों के रूप में पिरोकर उनका गायन और मंचन किया जाता है।
इसमें मुख्यतः जो एक दुल्ला भाटी उनका भी जिक्र आता है, जिन्होंने मुगल दासता के समय बहुत सी हिंदू लड़कियों, जिनको को जिन्हें जबरन बेच दिया गया या जिनको जबरन अधीन कर लिया गया था , उनको उन्होंने दासता से मुक्त कराया और उन्हें उनकी शादियां करवाई और उनका जीवन दोबारा से शुरू करने में बहुत बड़ा जिनका योगदान है। उनका नाम दुल्ला भट्टी है उनको भी बहुत याद किया जाता है।
Lohri के दौरान जो पारंपरिक गीत एवं नृत्य होते हैं उन्हें गिद्दा कहा जाता है यह बहुत ही सुंदर और देखने लायक दृश्य होता है।
Lohri से संबंधित परंपराओं एवं रीति रिवाज से ज्ञात होता है, की Lohri में जलाए जाने वाली अग्नि को, राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री माता सती के हवन कुंड में दहन के प्रतीकात्मक भी माना जाता है। इसीलिए इस अवसर पर विवाहित पुत्री को मां के घर से त्योहार फल स्वरुप मिठाई रेवाड़ी फल इत्यादि भिजवाए जाते हैं।
Lohri के दिन अपने दैनिक कार्य का दैनिक कामकाज से निवृत होकर सभी परिवार के लोग पवित्र अग्नि के परिक्रमा करते हैं एवं युवक युवतियों गायन और नृत्य का प्रदर्शन करते हैं।
Lohri मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाई जाती है।
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